पुस्तके : स्वर्ग की लहरे
समर्पण आकाश है, आकाश की सीमा नहीं होती । कोई तलाश कर उन सीमाओं की। कोई बाँध सकता है आकाश को? श्रध्दा और आस्था वे पुष्प हैं जिनकी सुगंध बहुत ही मदमाती है। मस्ती है उनमें, खुमारी है उनमे, समर्पण, श्रध्दा और आस्था की त्रिवेणी, बडी ही सुन्दर संगमधारा गंगा, यमुना, और सरस्वती की, पुण्य का धाम, एक तीर्थ, एक मुक्ति का द्वार। बात विश्वास की है, यही विश्वास संजोये बहन शंकुतला अग्रवाल जी आती है मेरे पास। कहती है - कुछ बात करनी है । महराजश्री के पवन आशीर्वाद से गद-गद, पुलकित कुछ कह नहीं पाती है, रोम-रोम में जैसे पुल्कन है, पिघल रह है जैसे सब कुछ, आँखों में सहसा पनि की बूंदे, हर्ष की, उल्लास की, वसंत की, मधुमास की, हास की, परिहास की, आशा और आस्था की, विनम्रता की, कुछ कह नहीं पायीं, पर मैं समझ गया - स्वर्ग की लहरे, मूल पुस्तक आत्मजागरण की वेला का दुसरा भाग, समर्पित करना चाहती हैं, सदगुरु चरणों में। उनके शब्द उनकी वाणी, अमृत जैसी मिश्री रस घोल देती है जीवन में, प्रकाशित करने का विचार, और फिर अवसर गुरुपुर्निमा का। गुर तो बरसते है कृपा लगातार, वर्षा करते है स्नेह कि, सद्ज्ञान की, लहरे बाटते हैं राम की, भगवान की, शिष्य क्या समर्पित करे? सोचा, जो मन के भाव है, अर्पित करो वही गुरुचरण में।
और यह पुस्तक 'स्वर्ग की लहरे', कागज के पत्ते नहीं हैं ये। यह वाणी है सदगुरु सुधान्शुजी महाराज के। यह सुगंध है बहन अग्रवाल के समर्पण की, उनकी आस्था के ज्योति है, श्रध्दा का मोती है, यह आपके जीवन मे अमृत रस घोल दे, यही कामना है हमारी! इस पुस्तक के प्रकाशन में और लगभग सभी पुस्तकों के प्रकाशन मे हमेशा योगदान रहता है एक ऐसे मोंन, शांत और समर्पित व्यक्तित्व का, जो नम नहीं चाहता, मौंन सेवा की मूर्ति, किन्तु मेरा मन मान नहीं रहा है। आशीर्वाद है मोनिका को, जिसका रोम-रोम मिशन की सेवा को समर्पित है। भगवान उसे सुख दे और महारजश्री का सान्निध्य उसे मिलता रहे और उसकी लगन की ज्योति बनी रहे !
'आत्मजागरण की वेला' मिशन की सबसे पहली पुस्तक थी, मुखपृष्ट पर महाराज्श्री का सुन्दर चित्र उसी समय का तलाशा है हमने।
- डाँ नरेन्द्र मदान