संतो एवं श्रेष्टजनों के लिये साधना क्षेत्र समाज है। वे संसार में तो रहते है किन्तु उनका जीवन स्वहित के लिये न हो परहित के लिये होता है। साधना की सिद्धी तत्त्व - दर्शन है, यह साधानारुपी वृक्ष का पका हुआ फल है। तत्त्व दर्शन है तत्त्व को स्वयं प्रत्यक्ष करना। ऐसी स्थिति अनेक जन्मों की साधना, निष्टायुक्त भक्ती एवम कर्म के द्वारा प्राप्त होती है। तत्त्व दर्शन से व्यक्ति का व्यक्तित्व अलौकिक हो जता है। साधना से प्राप्त अलौकिक व्यक्तित्व से जन्म होता है एक ऐसे परम संत का, जिनके सता वार्तालाप, संग और दर्शन से व्यक्ति मे दैवी सम्पति का स्वतः प्रवेश होता है और मनुष्य अध्यात्मिक परिवेश मे ढल जाता है। उनके साथ बातचीत कराने में। समीप बैठने में आनंद मीलता है और उनसे बिछड़ने पर ऐसा लगता है, जैसे खो गया है बहुत कुछ। उनसे मिलाने के लिए, दर्शन के लिए बार-बार मन लालायित होता है।
लोक्विख्यात संत परम पूज्य सुधांशु जी महाराज के अलौकिक व्यक्तित्व से सैकड़ों, हजारों, व्यक्ति प्रभावित हुए है, उनमे अध्यात्मिक क्षेत्र में सम्मानित संतावृन्द, प्रतिष्टित राजनेता, धर्मगुरू, समाजसेवी, व्यवसायिक अर्थात अपने-अपने मनीषी क्षेत्रों के विशेषज्ञ सम्मिलित है। चिन्तन हो देश का, समाज का, धर्मं का, राजनीती का, ज्ञान का या हो विज्ञान का; पूज्य सुधांशु जी महाराज का पारदर्शी ज्ञान सबको मोह लेता है।
गहन से गहनतर विषयों पर गम्भीर चिन्तन, मनन और समाधान, राष्ट्र को नई दिशा देना, भ्रम से जकडे लोगों को श्रेष्ठ धर्ममार्ग पर प्रेरित करना, उच्च पदों पर आसीन प्रतिष्ठित जनों को कर्तव्यबोध की दिशा प्रदान करना, संतों के ज्ञान विज्ञान की निरातार चर्चा - यह श्रद्धेय सुधांशु जीं महाराज के सार्वजानिक जीवन का अभिन्न अंग है। जीतनी श्रध्दा होती उतनी ही भाव मे उत्क्रुष्ठाता होगी, मन का दर्पन उतना ही स्वच्छ होगा। बस ह्रदय को निर्मल कर लेने की जरुरत है।
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