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Tuesday, October 16, 2007

संत कबीर दोहे

सब धरती कागद करूं, लखनी सब बनराय।

सात समुँदर की मसि करूं, गुरू गुन लिखा न जाय।।

कबीर ते नर अंध है, गुरू को कहते और।

हरी रूठे गुरू ठौर है, गुरू रूठे नहीं ठौर।।

गुरू बडे गोविन्द ते, मन में देखू विचारी।

हरी सुमिरे सो बार, गुरू सुमिरे सो पार।।

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