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Wednesday, October 31, 2007

हे ब्रह्मज्ञान के प्रकाशपुंज


पुस्तक : संचेतना जुलाई २००७

हे सदगुरूदेवा हे ब्रह्मज्ञान के प्रकाशपुंज। हे सृजनात्मक शक्ति के स्वामी। हम सभी भक्तों का श्रद्धा भरा प्रणाम स्वीकार हो।
हे त्रिगुणातीत आप दयालु हो, परम कृपालु को, धर्म के संवाहक हो, ऋषि -मुनियों की परंपरा के सजीव उदाहरण हो, काल -कालांतर के वृताँतों और अनुभवों की सुखद अनुभूति हो, आपने हमें परिश्रम, पुरूषार्थ , साहस, सहनशक्ति, तन्मयता, स्वावलंबन, नियमितता, व्यवस्था, स्वच्छता, सेवा और सहयोग रूपी अनुपम सीख देकर जो हमारे ऊपर उपकार किया है, इसके लिए हम आपके आभारी हैं।

हे मानवता के पथ प्रदर्शक। आपकी ज्ञानमयी अमृत वाणी सदैव हमारे अंग संग रहती है। भगवान की स्तुति, प्रार्थना, उपासना में आपका सदज्ञान एवं निर्देशन ही सहायक सिद्ध होता है। भाव में अभाव में, उन्नति-अवनति में और जीवन की सुनसान राहों में आप सखा बनकर हमेशा हमारे साथ रहते हो।

आपके आशीष का अमृत सदैव हमें प्राप्त होता रहे, यही हमारी अभिलाषा है।
हे ज्ञान के सागर। आपके ब्रह्मज्ञान की अनुगूँज से अंतर्मन में शान्ति कि उत्पति होती है। तब हारे अन्त:करण में आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित हो जाता है जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण तथा प्रेमपूर्ण हो जाता है। हे गुरूवर। हमारा ह्रदय सदैव आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे और हमारा मै आपके श्रीचरणों में लगा रहे। यही प्रार्थना है, याचना है, स्वीकार कीजिए। हम सबका बेडा पार कीजिए।

गुरू चरणों में
समस्त शिष्यों के ह्रदयों की आर्त्त पुकार

Tuesday, October 16, 2007

संत कबीर दोहे

सब धरती कागद करूं, लखनी सब बनराय।

सात समुँदर की मसि करूं, गुरू गुन लिखा न जाय।।

कबीर ते नर अंध है, गुरू को कहते और।

हरी रूठे गुरू ठौर है, गुरू रूठे नहीं ठौर।।

गुरू बडे गोविन्द ते, मन में देखू विचारी।

हरी सुमिरे सो बार, गुरू सुमिरे सो पार।।

Monday, October 15, 2007

श्री श्रीगुरू बंदना


अखंड मंडलाकार व्याप्त येन चराचर

तदंपदं दर्शितम येन तस्मै श्री गुरूवे नम:

अज्ञान तिमिरान्धश्य ,ग्यानांजन शलाकया

च्क्षूरून्मीलितनं येन तस्मै श्री गुरवे नम;

Saturday, October 13, 2007

गुरू महिमा


गुरू गोविन्द दोउ ,खडे काके लागुं पाय।

बलिहारी गुरूदेव की ,जिन गोविंस दियो बताय।।


गुरू बिन ज्ञान न उपजे ,गुरू बिन भक्ति न होय।

गुरू बिन संशय ना मिटे ,गुरू बिन मुक्ति न होय।।


गुरू -धोबी शिष्-कापडा ,साबुन -तिरजनहार।

तुरत -सिला पर धोइये ,निकले रंग अपार।।

Monday, October 8, 2007

पथ प्रदर्शक

पथ प्रदर्शक, जब हो गुरुवर हमारे
बढ़े कदम, बस वहीं हमारे ! !




अखंड्मडंलाकारम
व्याप्तं येन चराचरम

तत्पदम दशिर्तम येन तस्मै श्री गुरवे नम: