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Sunday, August 26, 2007

दिव्य शक्ति है सुधान्शुजी महाराज

दिव्य शक्ति है सुधान्शुजी महाराज

सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय संस्कृति के विपुल ज्ञान को जन जन के अन्तरमन मे ज्योतिरूप में प्रतिस्थापित करने के लिए संकल्पबद्ध पूज्यवर सतगुरु श्री सुधांशु जी महाराज तप त्याग और ज्ञान-साधना के प्रतिनिधि बनकर अवतरित हुए है धरती पर।

आत्मज्ञान, वेदविज्ञान, मनोविज्ञान, के तत्ववेक्ता


सात वर्ष की अल्पायु में प्रभात में भजन गाना, गीत संगीत के स्वरलहरियों में आनंदित रहना, मुखमंडल पर सुदिता और सोम्यता, भोलेपन और गाम्भीर्य का अदभूत मिश्रण, आपका सात्विक अभामंडल सबको प्रभवित करता था।



२२ वे वर्ष मे विश्ववविद्यालय की शिक्षा सम्पन कर भारत का भ्रमण किया। मन उद्दिग्न हो उठा देश कि स्थिति को देखकर, बँटा था देश धर्म-अधर्म में, जाति और वर्ग में, आमिर-गरीब का अंतर , शोषण, भ्रष्टाचार, छोटे-बडे का भेदभाव संकल्प किया देश को मुक्त करना है इस दारुण दशा से, अज्ञान, आभाव, अन्याय और आलस्य से, अकांक्षा और अनाचार से, अकांक्षा से, लेखनी में ज्यादा ताकत है तलवार से। कुछ वर्षो तक आपने धर्मिक संन्थाओं में प्रवचन, लेखन, संपादन, सृजन-संगठन किया और नेतृत्व दिशा दी।

अपके जीवन में एक स्वर्णिम मोड़, नई चेतना का जागरण, अन्तार्श्क्तियों का उदबोधन अपको उत्तरकाशी में हिमालय कि साधना में योगी सदानन्द जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ, आशीष मिल उनका - अपने स्वरुप को पहचानो, दिव्य तेज कि अनुभूति हुई, परमनाद का गुंजन हुआ साधानाविश्व को। धरती प्यासी है धर्मज्ञान कि धारा बहाओ, अमृत बनकर बरसों बादलों की तरह, ठण्डी फुहार, सेवा, सिमरन, स्वाध्याय, समर्पण और सहयोग कि। छू जाये सबके मन को, इंसान-इंसान मे भेद न रहें, सरोबोर कर दो सबके मन को भगवदनाम से, पीडा हरो लाचार की, दीन और ही की।

स्वामी मुक्तानंद्जी के सानिध्य में २४ मई, १९९१ को रामनवमी के पावन दिन विश्व जागृति मिशन की स्थापना की। महाराज्श्री के वरदहस्त की थपथपाहट से आज मिशन एक वाट व्रुक्ष है । देश-विदेश मे इसकी ५६, १८ स्थानों पर वानप्रस्थ आश्रमों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। करुनासिंधू धर्मार्थ अस्पताल की स्थापना दो सौ मरीजों की प्रतिदिन निःशुल्क तीन अन्य अस्पताल निर्माणाधीन, आदर्श गौशलाएं, भव्य मंदिर और सामुहिक प्रार्थना-स्थल, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर कला की अदभूत सजीव रचना, गुरुकुल उपदेशक महविद्धालय, मानसरोवर झील, वृद्धाश्रम, दीन-दुःखी की सेवा, राष्ट्रीय विपत्ति में सेवाप्रकल्प, वही पब्लिक स्कुल कि स्थापना , यह बहुमूल्य देन है सदगुरु सुधान्शुजी महाराज की मानवजाति को केवल पाँच वर्षो में यह कुछ और श्रद्धापर्व के द्वारा युवाओं को दी नयी सोच। माता पिता देवतुल्य है, इनको करो आदर सन्मान, यही है संतान के लिए भगवान। लाखों लोग दो अक्दुबर को श्रद्धापर्व मनाते है।


courtesy back cover of "SWARK KE LAHRE"